- उज्जवल श्रीवास्तव
वो पिया के घर जाकर मायके को याद करती है,
अंगो में पहनी पियरी में माँ की छवि ढूंढ़ती है,
पैरों में पहनी बिछिया में भाभी का प्यार ढूंढ़ती है,
लाल रंग के जोडे में पिता के आंसू ढूंढ़ती है,
आँचल में फसे रह गए लावे में, भाई को महसूस करती है,
हाँथों में लगी मेंहदी देखकर सखियों को याद करती है,
वो पिया के घर जाकर मायके को याद करती है ।
रस्म खत्म हो जाए यही इंतज़ार करती है,
कोहबर में बैठी- बैठी नन्दों से बात करती है,
घर की बातें करके थोड़ा रो लेती है,
डरी,सहमी,संकुचाती ससुराल में रहती है,
अपनो से दूर जाकर अनजानो से नाता जोड़ती है,
वो पिया के घर जाकर मायके को याद करती है।